Indradhanush Utar aaya - 1 in Hindi Love Stories by piku books and stories PDF | इंद्रधनुष उतर आया...... 1

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इंद्रधनुष उतर आया...... 1

छत पर उदास सी अपने में खोई खड़ी थी राम्या। शायद

अपने को खो देने की कोशिश में बस यूं ही खड़ी थी।

सामने पार्क में रंग-बिरंगे फूल लहरा रहे थे। एक तो

वसंत ऋतु, दूसरे उन फूलों की साज-सज्जा पार्क को

संभालने वाले प्राधिकरण ने बहुत ही कलात्मक ढंग

से की थी। किसी कलाकार की कूची ने जैसे उन्हें हर

ओर छिटका दिया हो। बहुत ही करीने से उन फूलों का

आकार दिया गया था। किसी हिस्से में सफेद फूलों के

बड़े-बड़े गुच्छों को गोलाकार आकार देते हुए एक साथ

दस विशाल गुच्छे सजे थे तो कहीं सूरजमुखी की कतारें

थीं। लाल, पीला, बैंगनी, गुलाबी, नारंगी, नीला... किस

रंग के फूल नहीं थे वहां। पूरा इंद्रधनुष ही जैसे उतर

आया था पार्क में। सेमल के वृक्षों पर झूलते उसके फूल

चंदोबा सा बना इठला रहे थे। खूब सारे सेमल के फूल

नीचे भी गिरे हुए थे, मानो अपनी ओर ध्यान 

आकर्षि तरना चाहते हों।




फूलों को अपने होने पर गर्व था, यह जानते हुए भी शाम तक या एक-दो दिन में उन्हें मुरझा ही जाना है। 'फिर भी खिलना, मस्ती से झूमना नहीं छोड़ते,' हौले से हवा के झोंके की तरह एक आवाज ने उसके कानों को छुआ। वह सिहर उठी। ऐसा तो अब अक्सर ही होता है। और उसके बाद राम्या की आंखें नम हो जाती हैं। उसका किसी के कंधे पर सिर रखकर रोने का मन करता है, वह भी चीख-चीखकर। राम्या ने बहते आंसुओं को रोकने के प्रयत्न में कुछ पल के लिए अपनी मुट्ठियां भींच लीं।


धीमा-धीमा शोर उठा। उसने देखा कुछ बच्चे पिचकारी लिए पार्क में आ गए थे। पीछे से कुछ स्वर भी गूंजे, "अभी पानी से मत खेलना। दोपहर बाद होली खेलना। ठंड है।" अचानक राम्या को भी ठंड का एहसास हुआ। उसने कसकर शॉल लपेट ली। मार्च खत्म हो रहा है, पर सुबह-शाम की ठंड बाकी है।



सैर पर नहीं गई थी, तो छत पर ही चहलकदमी करने आ गई थी चाय का प्याला लिए। 'ये जो फूल खिले हैं न, इस होली पर उनके सारे रंग मैं तुम्हारे चेहरे पर लगाऊंगा ताकि इंद्रधनुष खिल उठें तुम्हारे कोमल गालों पर," फिर वही आवाज कानों के आर-पार हुई। यहीं खड़े होकर तो कहा था ईशान ने पिछले साल होली से पंद्रह दिन पहले... न जाने कितनी यादें राम्या के मन से आकर लिपट गईं। कहां मौका मिला था ईशान के साथ होली खेलने का उसे? होली ही क्या कोई त्योहार नहीं मना पाई थी... ईशान ने अपने प्रेम से सराबोर अवश्य कर दिया था, लेकिन राम्या को कहां इतना संग-साथ मिला उसकी कि वह उसके इश्क के हर रंग में खुद को भिगोकर उसे महसूस कर पाती?


मां कहती हैं, 'यादें गली के बच्चों की तरह होती हैं जो जब-तब डोरबेल बजाकर भाग जाते हैं। उनके लिए यह किसी खेल से कम नहीं होता है। बच्चों की तरह इन यादों को भी डांट कर भगा देना चाहिए और अगर न मानें तो इग्नोर कर देना चाहिए। डोरबेल का शोर परेशान करे तो गाना लगा लेना चाहिए, किसी धुन पर थिरक लेना चाहिए, लेकिन खुद को परेशान नहीं करने देना चाहिए।'


वह जानती है मां क्यों ऐसा कहती हैं। मां ही क्यों जो लोग भी उसके अपने हैं, सब ऐसा ही कहते हैं अपने- अपने तरीके से बातों को घुमाते हुए।


लेकिन वह तो इन यादों में जीना चाहती है। सच कहे तो इनमें ही जीना चाहती है। तीन महीने में इतनी यादें बन सकती हैं, उसने भी कहां सोचा था। सबको तो यही लगता है कि तीन महीने के साथ की खातिर वह क्यों अपनी जिंदगी को आगे बढ़ने नहीं देना चाहती


है।